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मेरा आज ही है मेरी असली पहचान. मैं कल क्या थी और कल क्या बनूगी ये महत्व नहीं रखता. मेरी पहचान मेरा आज है.
सोचा आज मैं इक कविता लिखूं
बस यूँ ही कुछ नया-नया लिखूं
क्या लिखूं ,
मेरी उड़ान लिखूं
या
अपना ख्वाब लिखूं
चलो फिर पक्का, मैं अपना आज लिखूं
अरे लिखते-लिखते फिर सोचने लगी
क्या लिखूं मैं क्या लिखूं
बीता कल लिखूं या आने वाला पल लिखूं
चलो फिर पक्का, मैं अपना आज लिखूं
आज मैं खुद को जान गयी हूँ
खुद से प्यार बेशुमार करने लगी हूँ
आज मैं सबसे दिल से मिलने लगी हूँ
मेरा कल था मेरी कुछ गलतियों से भरा
पर मैंने अपना आज सतरंगी रंगों से सजा लिया है
जिन्दगी का महत्व जो मैं समझने लगी हूँ
कल क्या होगा और कल मैं क्या बनूगी
नहीं फ़िक्र मुझे कल की
आज मैं हूँ और मेरा है अस्तित्व
सबकी बनी हूँ मैं चहेती
हर दिन खुद को और भी रही हूँ मैं निखार
मेरा आज पल-पल मैं रही हूँ संवार
हर मिलने वाले से हंस कर मिलती हूँ
अपने सुख-दुःख दूसरों से बाँटती हूँ
दूसरों की हर बात दिल से सुनती हूँ
आज हर कोई है मेरा दोस्त
जिन्दगी में नहीं जगह दुश्मनी की
हर दिन आज का देता मुझे शान
मेरा आज ही तो है मेरी पहचान....
Nice..
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया ज्योति जी
जवाब देंहटाएंshukriya ji.
जवाब देंहटाएंकाफी अच्छा लिखा है आपने
जवाब देंहटाएं@Anoop Rai
जवाब देंहटाएंशुक्रिया आपका उत्साहित करने के लिए
Behatareen!
जवाब देंहटाएंji shukriya
जवाब देंहटाएंएक टिप्पणी भेजें