
क्या आज की women's चुप रहकर हो रहे इस भयावह अन्याय को सहन करती रहेंगी. क्या वो नहीं चाहेंगी इसे रोकना और इसके विरुद्ध आवाज उठाना. जब तक आज की woman खुद आवाज नहीं उठाएगी और मदद के लिए तरसती रहेगी. तो ये अन्याय बंद होने की बजाय बढ़ता रहेगा.

चुप्पी तोड़ो खुद से नाता जोड़ो
मैं भारत की माँ, बहन, और हूँ बेटी
आदर और सत्कार की हूँ मैं हकदार
उज्जवल भारत के देखे मैंने थे सपने
आज का भारत देख हुआ ह्रदय पीड़ित
आज मेरे जिस्म पर हो रहा अत्याचार
पढ़कर खबर और देखकर दिल है शर्मशार
देखा आज भयावह चेहरा इन दरिंदों का
मेरी अश्रुधारा डुबो देगी तुम हैवानों को
स्वर मेरे तुम कुचल, पीस ना पाओगे
मिटा सके जो दर्द मेरा वो शब्द कहाँ से लाओगे
दरिंदों की बेधती ये नज़र, ना माँ देखे ना बहन
अब तुम ही कहो भला करू मैं कैसे ये अनर्थ सहन
देते हो बहुत भाषण और करते हो सभाएं
पर हर दिन टूट रही मेरी सब आशाएं
खूब भागी लेकिन सब व्यर्थ हुआ
वो आया दरिंदा आबरू मेरी ले गया
रोको इसको, टोको उसको, जीने दो मुझको
घर से अपने करो इक नयी शुरुआत
तभी तो बदलेंगे पुरे देश के हालात
अपनी
माँ, बहनों और पत्नी की आबरू, इज्ज़त,
का रखो सब ख्याल
बेटों को तुम सिखाओ सबका करना सम्मान
रहेगी हर घर में माँ, बहन, बेटी तब सुरक्षित
आवाज जब हर नारी खुद उठाएगी
जो देखे उसने सपने अपनी खुली आँखों से
वो सपने आजाद, सुरक्षित होकर पुरे कर पायेगी
ऐ नारी, तुम कर दो आज ही अपने घर में ये ऐलान
इज्जत करोगे तो इज्ज़त पाओगे, कर दो सबको हैरान
मैं अब इक अबला नहीं, मैं सबला हूँ
करनी पड़ी हिफाजत नारी की तो मैं काली बन जाउंगी
जब हुई जरूरत गर प्यार की मैं दयालु नव-दुर्गा बन जाउंगी
कब तक चुप मैं रहूंगी
कब तक ये अन्याय मैं सहूंगी
ऐ देश के दरिंदो, ऐ हैवानों
बहुत हुआ अब शोषण मेरी आबरू का
तुम्हारा नामो-निशान मैं मिटा दूंगी
तुम अब भी ना माने तो मैं ये देश जला दूंगी.
अगर आपको मेरे विचार सही लगे हो तो मुझे अवश्य बताएं. मुझे आपके विचारों का बेसब्री से इन्तजार है.
"कब तक चुप मैं रहूंगी
जवाब देंहटाएंकब तक ये अन्याय मैं सहूंगी"
A very topical problem powerfully highlighted in this poem!
@rationalraj2000
जवाब देंहटाएंthanks a lot
Well said. Touching.
जवाब देंहटाएं@abhiray59
जवाब देंहटाएंthanks a lot
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