शिक्षा में बदलाव से बदलेगा भारत-पर्यावरण संरक्षण आज सबसे जरुरी मानव जाति के लिए

हमारी शिक्षा, हमारी संस्कृति, हमारी परम्परा, हमारे ग्रन्थ, इतिहास, खेल, और हमारी वास्तुकला ये सब हमारी अनमोल विरासत है. और इन सबसे मिलकर ही बनते हैं हमारे संस्कार. संस्कारों से बनता है हमारा व्यक्तित्व. और व्यक्तित्व पर सबसे अधिक असर होता है हमारी शिक्षा प्रणाली का. शिक्षा दुनिया भर के लोगों के जीवन को संतुलित और इस पृथ्वी पर अपना अस्तित्व बनाने का बहुत मुख्य अंग है. शिक्षा हमारे मन, शरीर और आत्मा सबको संतुलित कर उसे सक्षम बनाती है

 

शिक्षा में बदलाव से बदलेगा भारत-पर्यावरण संरक्षण आज सबसे जरुरी मानव जाति के लिए


 

हमारा देश हर क्षेत्र की प्रणाली में सर्वश्रेष्ठ रहां है. चाहे वो सृजनात्मक प्रणाली हो, या निर्माण प्रणाली, या फिर शासन प्रणाली और या शिक्षण प्रणाली. सभी में भारत सदा अव्वल रहा हैइसके अलावा हमारे देश की शिक्षा में आस्था, भावना, दर्शन, संवेदनाएं, सृजन और सहनशीलता के अनेकों उदाहरण मिलते हैं.

जो आपको अन्य किसी देशों  में नहीं मिलेंगे. हम खुद इन सब को सहेज कर नहीं रख पा रहे. हमारे ग्रंथो, योग, और हमारी संस्कृति पर बहुत बार रिसर्च हुई हैं. लेकिन किसी ने उनकी थाह नहीं पायीऔर इसमें सबसे बड़ा अगर किसी का role है तो वो है आज की शिक्षा पद्धति का. अगर भारत को फिर से विश्व गुरु के रूप में प्रतिष्ठा दिलानी है तो इस शिक्षण पद्धति में हमें कुछ बदलाव करना बहुत जरुरी है

शिक्षण पद्धति को बदलने का विषय सिर्फ कागज के टुकड़ों पर चंद शब्द लिखने तक सीमित रहने का विषय नहीं है. ये गम्भीर चिंता और चिन्तन-मनन दोनों का विषय है. हमारे देश का गौरव क्या था. और आज हमने उसको कैसा बना दिया है. हमें जो मिला क्या उस रूप में हमने उसे रखा है. नहीं, हमने तो उसके रूप को मनमोहक से विकृत कर दिया है.

अब वो वक्त आ गया है जब हमे अपनी शिक्षा पद्धति पर फिर से विचार करना होगा. क्योंकि हमारे पास आर्थिक साधन तो बहुत हैं, पूरी दुनिया तक पहुँचने के मौके भी बहुत हैं. बस कमी है तो एक दृढ प्रतिज्ञा की. उसको साकार करने की इच्छाशक्ति की.

हमे अपनी शिक्षा प्रणाली को सबसे पहले इतनी मनभावन बनाना होगा जहाँ हर बच्चा उसे पाना चाहे. बच्चे तो वैसे ही खुशमिजाज और जिंदादिल होते हैं. और उनके इस रूप को ही वैसा बनाये रखने के लिए उनके बड़ों को भी वैसा ही बनना होगा.

मेरे विचार से आज सबसे अधिक जो बदलाव जरुरी है वो है पर्यावरण संरक्षण. अगर बदलाव लाना ही है तो आज शिक्षण प्रणाली में पर्यावरण को सबसे पहला और महत्वपूर्ण स्थान देना जरुरी है. हर बच्चा-बच्चा ये अच्छी तरह जान ले कि ये हरियाली, ये पेड़-पौधे उसके जीवन के लिए कितने जरुरी हैं. पर्यावरण संरक्षण का सभी प्राणियों के जीवन और इस प्राक्रतिक परिवेश से घनिष्ठ सम्बन्ध रहा है.

दुनिया भर में पर्यावरण सम्मेलन आयोजित किये जा रहे हैं. सभी देशों में लोग पर्यावरण के बारे में सीख रहे हैं. लेकिन हम तो पर्यावरण को देवता तुल्य मानने वाली सभ्यता के वासी हैं. फिर हम इसके संरक्षण को कैसे भूलते जा रहे हैं. हमारी प्राचीन परम्परा तो हमें इन जलस्रोतों, पेड़ों, नदियों की पूजा सीखाती आई है. हमने तो पीपल, आमला, बरगद, नीम और अर्जुन आदि अनेकों वृक्षों को देवता तुल्य माना  है.

प्रदुषण के कारण पूरी धरती दूषित हो रही है. और निकट भविष्य में अगर इसे नहीं रोका गया तो इसके परिणाम गम्भीर हो सकते है. ये आने वाले भविष्य में सम्पूर्ण मानव जाति का अंत कर सकता है.


मनुष्य जीवन का आधार पेड़-पौधे ही हैं. ये ही उन्हें आहार देते हैं. पौषण प्रदान करते हैं. इनका संरक्ष्ण बहुत जरुरी है. धरती हरी-भरी बनी रहे तो इसके इंसान को प्रत्यक्ष लाभ होते रहे. सिर्फ 'गो ग्रीन' कहने से नहीं बल्कि करने से ही ये सब होगा. ये मुश्किल भी नहीं है.


आओ आओ मिलकर पर्यावरण बचाएं,


सभी का जीवन बेहतर हम बनायें.


अन्य देश तो अब पेड़ों को प्रतिरोधी क्षमता मजबूत करने वाले और ओक्सीजन के दाता बता रही है. हमारी शिक्षा तो हमें पुराने ज़माने से ये सब बताती आ रही है. और ये सभी बातें एक इंसान को उसके सम्पूर्ण व्यक्तित्व के पूर्ण विकास में भरपूर सहयोग देती है.

हमारे पूर्वज तो आदिकाल से अपने छंदों, चौपाइयों और दोहों में, वेदों-पुराणों में इनके गुण गा चुके हैं. इनकी स्तुति कर चुके हैं. जिस गंगा-जमुना आदि नदियों की आज हम सफाई की योजनायें अब बना रहे हैं वो हमारे पूर्वज पहले से करते आये हैं. गंगा के पानी को हम आज भी गंगाजल मान कर उसका पान करते आये हैं.

अगर शुरू से ही बच्चे इसको समझ लेंगे तो वो इस देश को फिर से सोने  की चिड़िया का इसका स्थान दिला पाएंगे. बच्चे ही कल के निर्माता हैं. उनके हाथों में ही हमारा देश फलेगा और फूलेगा.

संक्षिप्त में मैं यही कहना चाहती हूँ कि

″शिक्षा हमारे लिए सिर्फ परीक्षा पास करने का ही माध्यम ना बने. ये हमारे जीवन को इस तरह प्रभावित करती है कि हमें चितामुक्त और सरल जीवन जीना सिखाती है. जिससे हम अपने अस्तित्व की सच्चाई जान लें वही असली शिक्षा है.″ 

तो दोस्तों , हमारे देश की फिर से हमे वही पूजनीय प्रतिष्ठा पाने के लिए पर्यावरण को दैवीय स्थान दिलाना होगा. पर्यावरण हमारी शिक्षा प्रणाली का महत्वपूर्ण अंग बने ये कोशिश करनी होगी. आज से और अभी से. पर्यावरण पर हम सबका व्यक्तित्व, स्वास्थ्य और विकास निर्भर  है.

मुझे आशा ही नहीं पूर्ण यकीन है कि आपको मेरे विचार पसंद आये होंगे. अगर आपको इसमें कोई भी खामी लगे तो मुझे अवश्य बताएं. मुझे आपके विचारो का इंतज़ार रहेगा

Post a Comment

और नया पुराने