नवरात्रि हिंदुओं का एक पर्व है, जिसे पुरे भारत में एक खास उत्सव की तरह मनाया जाता है। ये उत्सव शक्ति की देवी की पूजा-अर्चना का उत्सव है, और शक्ति के लिए देवी की आराधना का मुख्य कारण है माँ की दया, ममता, करुणा का भाव उनके भक्त पर सहज ही हो जाता है। और इस माँ की पूजा के बाद पूजा करने वाले उनके भक्त और साधक को किसी और से सहायता की आवश्यकता ही नहीं रहती। क्योंकि माँ स्वयं उसे सर्वशक्तिमान बना देती है।
वैसे तो नवरात्रि संस्कृत शब्द है, पुरे वर्ष भर में नवरात्रि 4 बारआता है। ये चार खास महीने हैं-
- पौष
- चेत्र
- आषाढ़ और
- अश्विन
और नवरात्रि का अर्थ है 9 रातें। प्रतिपदा से लेकर नवमी तक इस उत्सव में नौ रातों और दस दिन तक देवी/शक्ति के नौ रूपों की पूजा की जाती है। और आखिरी दसवां दिन दशहरा नाम से जाना जाता है। नवरात्रि के नौ रात और दस दिन में 3 देवियों की पूजा की जाती है- महालक्ष्मी, महासरस्वती या सरस्वती और दुर्गा माँ। इनके नौ स्वरूपों की पूजा होती है जिन्हें नवदुर्गा कहते हैं। दुःख मिटाने वाली देवी दुर्गा माँ। इस उत्सव में जिन नौ देवियों की पूजा की जाती है वे हैं-
- शैलपुत्री- पहाड़ों की पुत्री
- ब्रह्मचारिणी - ब्रह्मचारिणी माँ
- चन्द्रघण्टा - चाँद की तरह चमक वाली
- कुष्मांडा -पूरा जगत उनके पैरों में
- स्कंदमाता -कार्तिक स्वामी की माता
- कात्यायिनी - कात्यायन आश्रम में पैदा हुई
- कालरात्रि -काल नाश करने वाली माँ
- महागौरी - सफेद रंग वाली माँ
- सिद्धिदात्री -सर्व सिद्धि देने वाली माँ
शक्ति माँ की उपासना के लिए किसी खास मुहूर्त की जरूरत नहीं है, लेकिन नवरात्रि में इस पूजा का खास महत्व होता है। इन नौ दिनों में की गयी पूजा और तप का कई गुणा फल भक्तों को प्राप्त होता है, और सब मन की मनोकामना शीघ्र पूरी होती है। इस पूजा में सहस्त्रनाम के पाठ का खास महत्व माना गया है, सहस्त्रनाम में देवी माँ के एक हजार नामों का वर्णन है। इसमें उनके गुणों और कार्यों के अनुसार नाम दिए गए हैं, इनकी साधना से साधक या भक्त तुल्य हो जाता है। इस सहस्त्रनामों से हवन करने का भी विधान बताया गया है। हवन की सामग्री के हिसाब से ही फल की प्राप्ति होती है। इन नामों के उच्चारण से किया गया हवन सहस्त्रार्चन कहा जाता है, ये सर्व कल्याण और मनोकानाओं की पूर्ति के लिए किया जाता है। सहस्त्रार्चन के लिए सहस्त्र नामोँ को नामावली बाजार में किसी भी बुक स्टोर पर उपलब्ध हो जाती है।
नवरात्रि पूजा का महत्व:
उत्सव अम्बा देवी का प्रतिनिधित्व करता है। ये पूजा वैदिक पहले, प्रागेतिहासिक काल से चली आ रही है, नवरात्रि का पर्व माँ दुर्गा की पूजा आराधना और परमात्मा की शक्ति की सबसे शुभ और अनोखा वक़्त माना गया है। की शरुआत और शरद ऋतू की शुरुआत, इन दो समय माँ दुर्गा की आराधना के लिए खास पवित्र अवसर माने गए हैं।इस पर्व की तिथियां चन्द्र कैलेंडर के हिसाब से तय होती है।
नवरात्रि पूजा का पहला दिन:
पूजा के पहले दिन शैलपुत्री देवी की पूजा की जाती है, पुराणों में कहा गया है कि हिमालय के तप से खुश होकर आध्या देवी उनके यहाँ पुत्री के रूप में पैदा हुई थी।
नवरात्रि पूजा का दूसरा दिन:
भगवान शंकर को पतिरूप में प्राप्त करने के लिए माता पर्वती ने कठोर तप किया था, तीनो लोक उनके आगे झुक गए थे। इस तप के तेज से उनका रूप देदीप्यमान है, इनके रूप(ब्रह्मचारिणी) दाहिने हाथ में माला और बांये में कमण्डलु है।
नवरात्रि पूजा का तीसरा दिन:
ये देवी(चन्द्रघण्टा) का उग्र रूप है, इनके घण्टे की ध्वनि से विनाशकारी विपप्तियां भाग जाती हैं, अनेक शस्त्रों से सुसज्जित माँ की पूजा भक्त की रक्षा को तैयार रहती हैं।
नवरात्रि पूजा का चौथा दिन:
ये माता का रूप(कुष्मांडा) बहुत सुहावना है, कहते हैं इन माता की हंसी से ही सृष्टि का उदय हुआ था। ये देवी मनोकामना पूर्ण करती हैं।
नवरात्रि पूजा का पांचवां दिन:
इन दिन स्कंदमाता की पूजा की जाती है, देवी के पुत्र कार्तिकेय(स्कंद) हैं, जो देवासुर संग्राम में देवताओं के सेनापति नियुक्त किये गए थे। ये माता भक्तों को शौर्य प्रदान करती हैं।
नवरात्रि पूजा का छठा दिन:
कात्यायन ऋषि की तपस्या से प्रसन्न होकर माँ उनके पुत्री(कात्यायनी) रूप में प्रकट हुई थीं, और इन्होंने महिषासुर का वध किया था। जिन लड़कियों की शादी नहीं हो रही उन्हें इन माता की आराधना करनी चाहिए। गोपियों ने श्री कृष्ण से मिलने के लिए इनकी पूजा की थी।
नवरात्रि पूजा का सातवां दिन:
ये रूप माता का बहुत विकराल रूप(कालरात्रि) है, इस रूप में माता गदर्भ(गधे) की सवारी किये हैं, और माता के हाथों में कटार और लोहे का कांटा है। इस रूप से विनाशकारी विपत्तियां पलायन कर जाती हैं।
नवरात्रि पूजा का आठवां दिन:
नवरात्रि अष्टमी को महागौरी की पूजा का विधान है, ये माता का शांत और सौम्य रूप है। इसरूप में माता वृषभ पर आरूढ़ हैं, भगवान शिव को पाने के लिए माँ ने कठोर तप किया था तब माता का रंग काला पड़ गया था। शिव ने इनका गंगाजल से अभिषेक किया तब इनका गौरवर्ण हो गया, तभी से ये गौरी कहलाईं।
नवरात्रि पूजा का नौवां दिन:
नवरात्र पर्व के अंतिम दिन माँ के सिद्धिदात्री रूप की पूजा की जाती है, इनके पूजन से समस्त सिद्धियां प्राप्त होती हैं। ये माता चतुर्भुजी हैं। इनका वहां सिंह है और ये कमल के फूल पर पद्मासन लगाए विराजमान हैं। इनकी पूजा से नवरात्र की पूजा का अ नुष्ठान पूर्ण होता है।
नवरात्र आने वाले हैं आइये दोस्तों हम सब मिलकर माता का आव्हान करें-
"सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः सर्वे भद्राणि पश्यंतु , मा कश्चिद दुखःभाग्भवेत"
हम साथ ही माँ दुर्गा से ये प्रार्थना करते हैं कि माँ अपने भक्तजनों की मनोकामना पूर्ण करे और सबको सद्बुद्धि दे।
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