"पेट में कीड़े(Worms) कारण और निवारण "


हमारा शरीर खासतौर से हमारी आंत बहुत तरह के जीवाणुओं का घर होती है, इनमे से कुछ हमारे स्वास्थ्य के लिए लाभदायक और कुछ हानिकारक होते हैं। कुछ ऐसे जीवाणु भी होते हैं जो कोई भी रोग नहीं करते,  लेकिन कुछ जीवाणु कई रोगों का कारण हो सकते हैं। और इसी में एक केंचुआ(Earthworm) भी होता है।  


"पेट में कीड़े(Worms) कारण और निवारण "


केंचुए के पेट की बीमारी ऐस्केरिसिस "लंब्री कायडस" नामक केंचुए से होती है, माना जाता है कि दुनिया के 1/4 लोगों की छोटी आंत में ये केंचुए रहते हैं। किसी-किसी जगह के सभी लोगों के पेट में केंचुए पाए जाते हैं। 


केंचुए देखने में गोलाकार, गन्दे सफेद रंग के होता हैं, इनका सर पतला होता है। मादा केंचुए(Earthworm) की लम्बाई 12 से 20 सेमी. और पूंछ (Tail) टेढ़ी होती है। मादा कैंचुये 2 से 2.5 लाख अंडे रोजाना देती है, जो मल (Stool) के साथ शरीर से बाहर निकलते हैं। ये अंडे पानी और मिटटी में महीनों जीवित रहते हैं, ठंडी जगह में तो ये बरसों जिन्दा रह सकते हैं। 


अण्डों से प्रदूषित भोजन या पानी के सेवन से ये अंडे आंत में पहुंच कर लार्वा में बदल हेट हैं। यही लार्वा हमारे रक्त(Blood) के माध्यम से यकृत(Liver) और फिर फेफड़ों में पहुंचते हैं, यहाँ पर ये बड़े होते हैं, फिर ये हमारे फेफड़ों में छेद कर ये हमारी स्वाश नली में चले जाते हैं। यही लार्वा बलगम यानि कफ के साथ मिलकर 2 से 3 महीने में केंचुए बन जाते हैं।  केंचुए हमारी आंत में 6 से 18 महीने तक जीवित रहते हैं। 



रोग के लक्षण:-


यदि किसी की आंत(Intestine) में केंचुए(Earthworm) कम मात्रा में हैं तो ज्यादातर व्यक्तियों में कोई लक्षण(Symptoms) दिखाई नहीं देते। जब ये फेफड़ों(Lungs) या स्वाश नली में पहुँचते हैं तो खांसी, सांस फूलना, निमोनिया(Pneumonia) आदि हो जाती है। 


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अगर आंत में केंचुओं की संख्या ज्यादा है तो उलटी, दस्त, बुखार, पित्ती, चक्कर आना, हाथ-पैरों में झनझनाहट(Sensetion) और पेट दर्द आदि लक्षण दिखते हैं।


 


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केंचुए(Earthworm) यानि पेट के कीड़ों का बच्चों पर ज्यादा प्रभाव पड़ता है, जो भी भोजन बच्चे खाते हैं उनको ये कीड़े छत कर जाते हैं और उनको कुपोषण का शिकार बना देते हैं, जिससे बच्चों का मानसिक और शारीरिक विकास प्रभावित होता है। 


बचाव और उपचार:-


1.पेट में कीड़ों की समस्या अण्डों द्वारा, प्रदूषित जल या भोजन के सेवन से होती है। 


 2.सब्जी, फल आदि को बहते जल में अच्छी तरह धोकर या पकाकर खाएं।


  3.खुले स्थान में मल(Stool) त्याग करने से रोग फैलने का दर रहता है।
 अपना भोजन हमेशा सफाई से पका हुआ ही खाना चाहिए। 


 4. अपने भोजन को मक्खी, मच्छर और कॉकरोच से दूर रखें।  


5.कभी भी दुकानों पर खुले में बिकने वाली और ठेलों(Cart) पर लगने वाली चाट-पकोड़ी का सेवन ना करें।


 6.पानी हमेशा उबाल(Boil) कर या फिल्टर करके ही पीएं।


 7.अपने बच्चों को मिटटी खाने से हमेशा रोकें क्योकि मिटटी खाने से वो रोग ग्रस्त हो जायेंगे। 


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8.हमेशा शौच(Toilet) के बाद और भोजन से पहले अपने हाथ अच्छी तरह साफ़ पानी और साबुन से धोएं।


 9.अपने हाथों के नाख़ून(Nails) हमेशा छोटे रखें क्योंकि इनमे गन्दगी बहुत जल्दी जमा होती है।   


10.हमेशा अंतरवस्त्र(innerwear) साफ़ ही पहने। 



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