इस बीमारी को अर्श, पाईल्स, के नाम से भी जाना जाता है। इस रोग में गुड के भीतरी दीवार में मौजूद खून की नसें सूजन के कारण तन कर फूल जाती हैं, इससे उनमे कमजोरी आ जाती है और मल त्याग करने के वक़्त जोर लगाने से या कड़े मल के रगड़ खाने से उन खून की नसों में दरार आ जाती है। उनमे से खून आने लगता है।

बवासीर का कारण :-
*कुछ लोगों में यह रोग पीढ़ी दर पीढ़ी पाया जाता है, इसलिए इसे आनुवंशिक रोग भी कह सकते हैं।
*जिन व्यक्तियों को अपनी रोजगार की वजह से घण्टों खड़ा रहना पड़ता है, जैसे-बस कंडक्टर, ट्रैफिक पुलिस, पोस्टमैन या मजदूर जिन्हें भारी वजन उठाने पड़ते हों जैसे-कुली, मजदूर, भारोतोलक वगैरह, इनमे इस बीमारी से पीड़ित होने की सम्भावना ज्यादा रहती है।
*कब्ज भी बवासीर को जन्म देती है, कब्ज की वजह से मल सुख और कठोर हो जाता है। जसकी वजह से मल बहार निकलने में मुश्किल होती है। रोगी को बहुत देर तक शौचालय में उकड़ूं बैठा रहना पड़ता है, जिससे रक्त वाहिनियों पर ज्यादा जोर पड़ता है और वे फूल कर लटक जाती हैं।
*बवासीर गुड के कैंसर की वजह से या मूत्र मार्ग में रुकावट आने की वजह से या जभवस्था में भी हो सकती है।
बवासीर के लक्षण:-
- बवासीर का मुख्य लक्षण है, गुदा मार्ग से रक्तस्त्राव, जो शुरुआत में सीमित मात्रा में मल त्याग के समय या उसके तुरन्त बाद होता है।
- यह रक्त या तो मल के साथ लिप्त होता है, या बून्द-बून्द टपकता है। कभी-कभी यह बौछार या धारा के रूप में भी मल द्वार से निकलता है।
- अक्सर यह रक्त चमकीले लाल रंग का होता है मगर कई बार यह हल्का बैंगनी रंग या गहरे लाल रंग भी हो सकता है। कभी तो खून की गिल्टियाँ भी इस मल के साथ मिली होती हैं।
- रोग की शुरुआत में बवासीर के मस्से गुदा के बहार नहीं आते, फिर जैसे-जैसे बीमारी पुरानी होती है ये मस्से बहार निकलने शुरू कर देते हैं, ऐसे में इन्हें हाथों से मल त्याग के पश्चात् भीतर धकेलना पड़ता है।
- आखिर में तो ये हर वक़्त गुदा के बाहर ही लटके रहते हैं, और हाथ से धकेलने पर भी नहीं जाते। ऐसी अवस्था में इन मस्सों से एक चिपचिपे पदार्थ का स्त्राव होने लगता है जो उस स्थान पर खुजली पैदा कर देता है।
- गुदा में भारीपन का अहसास, हल्का सा दर्दस भी अक्सर मौजूद रहता है। कभी-कभी गुदा द्वार में जलन, खुजली और उस स्थान से उठी दुर्गन्ध भी अनेक लोग महसूस करते हैं।
बवासीर का रोग निदान:-
इस बीमारी की जाँच किसी भी कुशल चिकित्सक द्वारा कराई जा सकती है। गुदा की भीतरी रचना और उसके व्यंग्य या विकार का पता अंगुली से जांच द्वारा और एक विशेष उपकरण के द्वरा लगाया जा सकता है। इससे यह भी जानकारी मिलती है की रोग कितना फैला हुआ है।
बवासीर का उपचार:-
- रोग निदान के पश्चात् शुरुआती अवस्था में कुछ घरेलू उपायों से भी रोग की तकलीफों का काफी हद तक काबू पाया जा सकता है।
- सबसे पहले कब्ज को दूर कर मल त्याग को सामान्य और नियमित करना जरुरी है। इसके लिए हरी सब्जियों, तरल पदार्थों एवम फलों का ज्यादा मात्रा में सेवन करें, तली हुई और मसलों युक्त भोजन का सेवन ना करें।
- रात में सोते वक़्त एक गिलास पानी में इसबगोल की भूसी के २ चम्मच डाल कर पीने से लाभ होता है।
- गुदा के भीतर रात को सोने से पहले और सुबह मल त्याग के पूर्व दवा युक्त क्रीम या बत्ती लगा कर भी मल बाहर निकलने में आसानी होती है। गुदा के बाहर लटके और
- सूजे हुए मस्सों पर ग्लिसरीन और मैग्नीशियम सलफेट के मिश्रण का लेप लगाकर पट्टी बांधन से भी लाभ होता है।
- मल त्याग के बाद गुदा के आस-पास की अच्छी तरह सफाई और गरम पानी के सेंक करने से भी आराम मिलता है।
बवासीर के मस्सों को हटाने की भी कई विधियां उपलब्ध हैं:-
१. एक उपकरण से मस्सों को बर्फ में परिवर्तित कर नष्ट किया जाता है।
२. मस्सों में इंजेक्शन के द्वारा मस्सों को सूखने की दवा डाली जाती है।
३. शल्यक्रिया द्वारा मस्सों को काटकर भी निकल दिया जाता है।
४. इनके अलावा मस्सों पर एक विशेष उपकरण के द्वारा रबड़ के छल्ले चढ़ा दिए जाते हैं जिससे मस्सों का रक्त परवाह बन्द हो जाता है और मस्से सूख जाते हैं।
५. इंफ़्रा रेड किरणों का प्रयोग कर मस्सों को सुखाना।
aapka lekh gyanvardhak aur labhkari h.
जवाब देंहटाएं[…] वात-पित्त-कफ नाशक होता है। इससे बवासीर, खांसी, श्वाश, कमजोरी, और क्षय रोग-नाशक […]
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